Monday 25 April 2022

मार्क्सवादियों के नाम अपील

मार्क्सवाद का सिद्धांत सर्वशक्तिमान है क्योंकि वह सत्य है। वह सर्वव्यापी तथा समदर्शी है। कम्युनिस्ट पार्टियों तथा अन्य वामपंथी संगठनों के साथ संबद्ध और, इन सबसे असंबद्ध, मार्क्सवादियों के नाम अपील ! प्रिय प्रबुद्ध साथियो, आप सब ने मार्क्सवाद को आत्मसात किया है और, आप मार्क्सवाद के महान शिक्षकों की नसीहतों से अपने अपने हिसाब से मार्गदर्शन लेकर अपने अपने कार्यभारों को तय करते रहे हैं। आज भारतीय राजनीति तथा अर्थव्यवस्था, आजादी के बाद के सबसे कठिन दौर से गुज़र रहीं हैं। इस बात की भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि अगर समय रहते सार्थक हस्तक्षेप नहीं किया गया तो प्रतिगामी शक्तियां समाज को अतीत के अंधेरे गर्त में गर्क कर छोड़ेंगीं जहाँ से बाहर निकलने में आनेवाली पीढ़ियों को दशकों तक संघर्ष करना होगा। मार्क्सवाद के महान शिक्षकों के कुछ सबक हैं जिनकी रोशनी में आप सबसे मैं कुछ कहना चाहता हूँ। सबक नं 1. क्रांतिकारी सिद्धांत के बिना कोई क्रांतिकारी आंदोलन नहीं हो सकता है। सबक नं 2. सिद्धांत जनता के मन में घर कर लेने पर भौतिक शक्ति में परिवर्तित हो जाता है। सबक नं 3. मार्क्सवाद का सिद्धांत सर्वशक्तिमान है क्योंकि वह सत्य है। वह सर्वव्यापी तथा समदर्शी है और मानव को एक सर्वांगीण वैश्विक दृष्टिकोण प्रदान करता है। मार्क्सवाद का दार्शनिक आयाम भौतिकवाद है और विकास का सिद्धांत द्वंद्ववाद है। जिस प्रकार मानव का ज्ञान प्रकृति (यानि विकासरत पदार्थ), जिसका अस्तित्व उससे निरपेक्ष है, का प्रतिबिंब है, उसी प्रकार मानव का सामाजिक ज्ञान (यानि उसके अनेकों विचार तथा सिद्धांत - दार्शनिक, धार्मिक, राजनैतिक इत्यादि) समाज की आर्थिक प्रणाली को प्रतिबिंबित करता है। सबक नं 4. जिस प्रकार और सभी वैचारिक आयामों में, परंपराएँ यथास्थितिवादी शक्तियाँ मुहैय्या कराती हैं, उसी प्रकार धर्म के एक बार अस्तित्व में आने के बाद उसके अंदर भी परंपरा का तत्त्व उसी तरह मौजूद रहता है। लेकिन इस तत्त्व का रूपांतरण वर्ग संबंधों के कारण होता है - अर्थात उन लोगों के बीच के आर्थिक संबंध जो इन रूपांतरणों का कारण बनते हैं। सबक नं 5. हर वर्ग अपने आर्थिक संबंधों के आधार पर सामाजिक और राजनैतिक विचारों का एक ऐसा तिलस्म खड़ा कर लेता है जो उसके आर्थिक आधार से पूरी तरह असंबद्ध नजर आता है। सबक नं 6. किसी ज्ञान या सिद्धांत की सच्चाई व्यक्तिपरक भावनाओं से तय नहीं होती है, बल्कि सामाजिक व्यवहार में वस्तुपरक परिणामों से तय होती है। सबक नं 7. अगर मनुष्य सफल होना चाहता है, अर्थात, अपेक्षित परिणाम हासिल करना चाहता है, तो उसे अपने विचारों को बाहरी वास्तविक जगत के साथ समन्वित करना होगा; अगर उनका समन्वय नहीं होगा तो वह अपने प्रयास में नाकाम होगा। सबक नं 8. राजनीति में लोग हमेशा ही छलावे तथा ग़लतफ़हमी के शिकार रहे हैं, अज्ञानी होने के कारण, और होते रहेंगे जब तक कि वे सभी नैतिक, धार्मिक तथा सामाजिक वक्तव्यों, घोषणाओं तथा वायदों के पीछे एक या दूसरे वर्ग के हितों की पड़ताल करना नहीं सीख लेते हैं। विशेष तौर पर नेतृत्त्व की यह ज़िम्मेदारी है कि वह सभी वैचारिक मसलों की गहन समझ हासिल करे। सबक नं 9. काफी तादाद में लोग सतही या पूरी तरह नदारद सैद्धांतिक प्रशिक्षण के साथ, आंदोलन के व्यावहारिक महत्व तथा सफलता के कारण उसमें शामिल हो गये हैं। सबक नं 10 इस समय तो हम केवल इतना कहना चाहते हैं कि हरावल लड़ाकू की भूमिका केवल ऐसा संगठन ही निभा सकता है जो अत्याधिक विकसित सिद्धांत से संचालित हो। सबक नं 11 राज्य का सर्वोच्च रूप, जनवादी गणतंत्र, जो हमारी आज की सामाजिक परिस्थितियों में अधिक से अधिक अटलनीय आवश्यकता बन गया है, और जो राज्य का वह स्वरूप है केवल जिसके अंतर्गत ही सर्वहारा वर्ग तथा बुर्जुआ वर्ग के बीच का अंतिम निर्णायक युद्ध लड़ा जा सकता है - जनवादी गणतंत्र आधिकारिक रूप से संपत्ति की असमानताओं को स्वीकार नहीं करता है। सबक नं 12 उत्पीड़ित वर्ग, हमारे मामले में सर्वहारा वर्ग, जब तक अपने आप को स्वतंत्र करने के लिए परिपक्व नहीं हो जाता है, तब तक उसका बहुमत मौजूदा सामाजिक व्यवस्था को ही एकमात्र संभव विकल्प समझता रहेगा, तथा राजनीतिक रूप से पूँजीवादी वर्ग का ही दुमछल्ला बना रहेगा। सबक नं 13 सार्विक मताधिकार कामगारों की परिपक्वता का मापदंड है। वह आधुनिक राज्य के अंतर्गत इससे अधिक न कभी हो सकता है और न कभी होगा, पर यही काफी है। जिस दिन सार्विक मताधिकार का थर्मामीटर कामगारों के बीच खलबली का चरम बिंदु दर्शाने लगेगा, वे, और पूँजीपति भी समझ जायेंगे कि वे कहाँ पहुंच गये हैं। सबक नं 14 आंदोलन के हित में भी नहीं है कि किसी एक देश के मजदूर उसके आगे आगे चलें - बल्कि वे लड़ाई के मैदान में एक सम्माननीय स्थान हासिल करेंगे, और जब या तो औचक गंभीर परीक्षा की घड़ी या फैसलाकुन वाक़या उनसे अत्याधिक साहस, अत्याधिक दृढ़ता तथा ऊर्जा की मांग करेगा तब वे लड़ाई के लिए मुस्तैद तैयार खड़े होंगे। सबक नं 15 एक ही रास्ता है, और वह है, हमारे चारों ओर के इसी समाज में उन शक्तियों, जो उस क्षमता का गठन कर सकती हैं जो पुरातन को बुहार कर नये का निर्माण करने में सक्षम है तथा जिन्हें अपनी सामाजिक परिस्थिति के कारण करना चाहिए, को ढूँढ निकालना और संघर्ष के लिए उन्हें जागरूक तथा संगठित करना। सबक नं 16 ऐतिहासिक घटनाएँ समग्र रूप से संयोग के नियम के अनुरूप प्रतीत होती हैं। लेकिन जहां सतह पर आकस्मिकता का बोलबाला है, वहां वास्तव में यह हमेशा आंतरिक, छिपे हुए कानूनों द्वारा नियमित होता है, और बात केवल इन नियमों की खोज की है। सबक नं 17 महान मूल विचार, कि संसार को तैयार चीज़ों के समुच्चय के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि प्रक्रियाओं के समुच्चय के रूप में समझा जाना चाहिए, जिसमें, जितनी देर तक स्थिर हमारे मस्तिष्क में उनके प्रतिबिंब अर्थात अवधारणाएं रहती हैं, केवल उतनी देर तक स्थिर प्रतीत होनेवाली चीज़ें, अस्तित्व में आने और नष्ट होने वाले अनवरत परिवर्तन से गुज़र रही हैं, जिसमें प्रतीत होनेवाली अनिश्चितता तथा अस्थाई अवनति के बावजूद एक प्रगतिशील विकास ही अंतत: प्रभावी होता है। यह आधारभूत विचार, विशेषकर हेगेल के समय के बाद से, आमचेतना में इतनी अच्छी तरह घर कर चुका है कि सर्वव्यापी नियम के रूप में उसका विरोध यदा कदा ही होता हो। पर इस मूलभूत विचार की शब्दों में स्वीकृति एक बात है, और यथार्थ के धरातल पर, हर किसी आयाम की पड़ताल में उसको व्यापक रूप में लागू करना बिल्कुल ही अलग बात है। सबक नं 18 मेरा दृष्टिकोण, जिस में समाज के आर्थिक निर्माण के विकास को इतिहास की सहज प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, व्यक्ति को उन संबंधों के लिए उत्तरदायी कैसे ठहरा सकता है जो उसके स्वयं के सामाजिक स्वरूप के निर्माता हैं, मनोगत रूप से वह कितना भी अपने आप को उन से ऊपर मानता रहे। साथियो अंग्रेज़ों से आजादी मिलने के बाद, संविधान सभा द्वारा पारित संविधान के अनुसार, विविधताओं वाले अनेकों प्रदेशों तथा रियासतों का, सार्विक मताधिकार आधारित बुर्जुआ जनवादी गणराज्य के रूप में गठन किया गया था जिसमें गुप्त मतदान के आधार पर चुनी गई जन प्रतिनिधि सभाओं में राष्ट्रराज्य की सभी शक्तियां निहित हैं। प्रतिनिधि सभाओं द्वारा पारित कानून आम लोगों के आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन और व्यवहार का नियमन करते हैं। अपने जन प्रतिनिधि को चुनने का, बिना किसी भेद-भाव के समान अधिकार सभी को है, यह विचार पिछले 75 साल में आम जनचेतना में अच्छी तरह घर कर चुका है। इसीलिए प्रतिनिधि सभाओं द्वारा पारित कानून, छुटपुट औपचारिक अहिंसक विरोधों के बावजूद आमतौर पर स्वीकार्य होते हैं। आम जनता को हिंसक विरोध स्वीकार्य नहीं है। वोट न देने के बावजूद मेहनतकश वर्ग, बुर्जुआ वर्ग के प्रतिनिधियों को ही अपना प्रतिनिधि मानता है। मार्क्सवादी होने के नाते आप जानते हैं कि मौजूदा व्यवस्था में सभी सामाजिक समस्याओं का कारण, सामूहिक रूप से पैदा किये गये अतिरिक्त मूल्य का व्यक्तिगत हस्तांतरण ही है। पर श्रम आधारित मूल्य और अतिरिक्त-मूल्य के सिद्धांत ने जनचेतना में घर नहीं किया है क्योंकि श्रम आधारित मूल्य के सिद्धांत की समझ, अत्याधिक विकसित मजूरी आधारित पूँजीवादी व्यवस्था को प्रतिबिंबित करती है, जब कि देश में 95% श्रमिक आबादी, सामंतवादी तथा असंगठित बुर्जुआ उत्पादन व्यवस्था का हिस्सा है, केवल 5% मजदूरी आधारित श्रमिक आबादी है और इसी कारण आम जनचेतना सामंती परंपरावादी, बुर्जुआ आत्मवादी और धार्मिक रूढ़िवादी है। व्यक्तिगत-श्रम तथा सामूहिक-श्रम द्वारा भौतिक जीवन का उत्पादन, मानव जीवन का तथा मानव समाज का आधार है और, उत्पादन के साधनों का तथा उत्पादक शक्तियों का विकास मानव समाज की स्वभाविक प्रक्रिया है। सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा पारंपरिक कृषि और असंगठित तथा लघु उत्पादन क्षेत्र से आता है जिसमें अतिरिक्त मूल्य का हस्तांतरण वाणिज्यिक पूँजी के जरिए होता है। इस कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य अंतर्विरोध वाणिज्यिक पूँजी और औद्योगिक पूँजी के बीच है और राजनीतिक अंतर्विरोध सामंती-अधिनायकवाद और बुर्जुआ-जनवाद के बीच है। अर्थव्यवस्था में संख्याबल के रूप में मजूरी आधारित सर्वहारा की भागीदारी 5% है इस कारण राजनीतिक रूप से सर्वहारा-जनवाद या समाजवाद का समय अभी बहुत दूर है। भारत की राजनीतिक-आर्थिक प्रतिगामी दिशा को रोकने और उसे अग्रगामी दिशा प्रदान करने के लिए जरूरी है कि 2024 के चुनाव के लिए अग्रगामी शक्तियों को एकजुट किया जाय। वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित सिद्धांत की समझ से लैस होने के कारण यह आपका दायित्व है कि आप उन शक्तियों को एकजुट करें और यह आपको करना चाहिए। एकजुटता के इस प्रयास के लिए सीटों की अपनी दावेदारी आगे न रखें बल्कि न्यूनतम कार्यक्रम के आधार पर एकजुटता हासिल करें और एकजुटता के प्रयास में सम्माननीय स्थान हासिल करें तथा औचक गंभीर परीक्षा की घड़ी में मुस्तैद तैयार खड़े हों। 2024 के चुनाव में दो मुख्य राष्ट्रीय पार्टियाँ आमने सामने होंगीं। वाणिज्यिक-पूँजी तथा सामंती-अधिनायकवाद के प्रतिनिधि के रूप में भाजपा और औद्योगिक-पूँजी तथा बुर्जुआ-जनवाद के प्रतिनिधि के रूप में कांग्रेस। बाकी प्रादेशिक राजनीतिक दल महागठबंधन बनाने का प्रयास करेंगे पर वह केवल लोगों को भ्रमित ही करेगा। जाहिर है मार्क्सवादी होने के नाते आपका प्रयास होना चाहिए कि 2024 के चुनाव के लिए सभी प्रगतिशील ताकतें कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट हों। इसकी मांग और प्रयास अभी से शुरू कर दिये जाने चाहिए ताकि कांग्रेस के आंतरिक अंतर्द्वंद्व में संतुलन, प्रतिगामी ताकतों की तुलना में प्रगतिशील ताकतों के हक़ में हो। देश की राजनीतिक प्रक्रिया में तीन कम्युनिस्ट पार्टियों के अलावा अनेकों अन्य संगठन हैं जो मार्क्सवादी होने का दम भरते हैं। अनेकों संगठनों तथा गुटों की मौजूदगी सर्वहारा चेतना के विस्तार और कामगारों की एकजुटता में एक बड़ा रोड़ा है। प्रत्यक्ष में वे एकजुट नहीं हो पाते हैं क्योंकि उनके बीच भारतीय अर्थव्यवस्था के विश्लेषण के बारे में मतभेद हैं और फलस्वरूप क्रांतिकारी आंदोलनों की रणनीति के बारे में भी मतभेद हैं। पर मूल कारण है कि आजादी की लड़ाई में वामपंथी आंदोलन की नींव ही मार्क्सवाद की संशोधनवादी समझ के साथ रखी गई थी और हमेशा से लोग सतही या पूरी तरह नदारद सैद्धांतिक प्रशिक्षण के साथ, आंदोलन के व्यावहारिक महत्व तथा सफलता के कारण उसमें शामिल होते रहे हैं। यही कारण है कि औचक गंभीर परीक्षा की घड़ी या फैसलाकुन समय पर वे हमेशा ही गलत निर्णय लेते रहे हैं। कौन सही था और कौन गलत था, यह तर्क से तय नहीं हो सकता है। सौ साल बाद भी वामपंथी आंदोलन अपने आपको विकल्प के रूप में पेश करने की स्थिति में नहीं है, इस बात की तसदीक़ करता है कि वामपंथी यथार्थ के बारे में अपनी समझ को यथार्थ के साथ समन्वित करने में नाकाम रहे हैं। सभी वामपंथी गुटों के नेतृत्त्व की यह ज़िम्मेदारी है कि वह सभी वैचारिक मसलों की गहन समझ हासिल करे और कामगारों को सर्वहारा चेतना से लैस करे। उम्मीद है आप सभी SFS (सोसायटी फॉर सांइंस) की बार बार दी जा रही चेतावनी पर ग़ौर करेंगे और नई पीढ़ी के सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक युवाओं को, किसी के साथ प्रतिबद्ध होने से पहले, विमर्श के जरिए मार्क्सवाद के दार्शनिक आयाम की समझ हासिल करने में मदद करेंगे। व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन में सफलता के लिए शुभकामनाओं के साथ सुरेश श्रीवास्तव 22 अप्रैल, 2022